उत्तराखंड सरकार ने राज्य के 250 पीएमश्री स्कूलों में इसी शैक्षणिक सत्र से छात्रों को पारंपरिक वाद्य यंत्र सिखाने की पहल की है। इस योजना के तहत ढोल, दमाऊ, हुड़का, रणसिंघा जैसे उत्तराखंड के लोक वाद्य यंत्रों की शिक्षा दी जाएगी, जो न केवल सांस्कृतिक विरासत को बचाएगी बल्कि छात्रों के लिए रोजगार के नए अवसर भी पैदा करेगी।संस्कृति संरक्षण की महत्वपूर्ण पहल उत्तराखंड की गढ़वाल और कुमाऊं संस्कृति में ढोल-दमाऊ का विशेष महत्व है। ये वाद्य यंत्र जन्म से लेकर मृत्यु तक के सोलह संस्कारों का अभिन्न अंग हैं और इनके बिना कोई भी मांगलिक कार्य पूरा नहीं माना जाता 45। शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत के अनुसार, इस पहल का मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड की संस्कृति का संरक्षण करना है।
आधुनिकता के दौर में नई पीढ़ी इन वाद्य यंत्रों को भूलती जा रही है, जिसके कारण यह समृद्ध विरासत विलुप्ति के कगार पर पहुंच गई है 5। कुछ वर्षों पहले टिहरी में आयोजित एक कार्यक्रम में 37 ढोल वादकों को सम्मानित किया गया था, जो इस कला को जीवित रखने का प्रयास था ।
पीएमश्री स्कूलों में छात्र ये वाद्य यंत्र सीखेंगे:
ढोल-दमाऊ: उत्तराखंड के सबसे प्राचीन और लोकप्रिय वाद्य, जिन्हें मंगल वाद्य भी कहा जाता है रणसिंघा: युद्धकाल में प्रयुक्त होने वाला वाद्य हुड़का और डमरू: लोकनृत्यों में प्रयुक्त होने वाले वाद्य मशकबीन और भकोरा: पारंपरिक हवाई वाद्य
बांसुरी और एकतारा: लोक संगीत के प्रमुख वाद्य
शिक्षा मंत्री धन सिंह रावत ने कहा –
“सरकार उत्तराखंड की संस्कृति और वाद्य यंत्रों के संरक्षण के लिए लगातार कार्य कर रही है। इसी सत्र से राज्य के 250 पीएमश्री स्कूलों में बच्चों को उत्तराखंड के पारंपरिक वाद्य यंत्र बजाना सिखाया जाएगा। इसका मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड की सांस्कृतिक धरोहर को बचाना और नई पीढ़ी को इससे जोड़ना है