हल्द्वानी: उत्तराखंड हाई कोर्ट ने हल्द्वानी दंगों से जुड़े एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए उसे कोई राहत नहीं दी। कोर्ट ने मौखिक रूप से सवाल किया कि मुख्य आरोपी अब्दुल मलिक के बेटे अब्दुल मोइद ने पुलिस की तलाश के बावजूद आत्मसमर्पण क्यों नहीं किया। सीनियर जस्टिस मनोज तिवारी और जस्टिस पंकज पुरोहित की खंडपीठ ने पूछा, “जब पुलिस तुम्हें ढूंढ रही थी, तो तुमने आत्मसमर्पण क्यों नहीं किया?” इस पर मोइद के वकील ने जवाब दिया कि उसे पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने का डर था। कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि एनकाउंटर डकैतों और लुटेरों के साथ होते हैं।
दंगों की पृष्ठभूमि:
फरवरी 2024 में हल्द्वानी के बनफूलपुरा इलाके में सरकारी जमीन पर अवैध रूप से बने एक मदरसे और नमाज स्थल को ध्वस्त किए जाने के बाद दंगे भड़क उठे थे। इन दंगों में पांच लोगों की मौत हो गई और कई पुलिसकर्मी व स्थानीय लोग घायल हुए। मोइद को पुलिस ने 20 दिन बाद दिल्ली से गिरफ्तार किया था। उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत मामला दर्ज किया गया है।
कोर्ट की टिप्पणियां:
हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को याचिका पर आपत्ति दर्ज करने का निर्देश दिया और मामले को दो सप्ताह बाद अन्य संबंधित मामलों के साथ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने का आदेश दिया। सुनवाई के दौरान मोइद की ओर से एक अतिरिक्त हलफनामा पेश किया गया, जिसमें दावा किया गया कि वह घटना के समय मौके पर मौजूद नहीं था। उनके वकील ने दलील दी कि मोइद किसी साजिश में शामिल नहीं था और दंगे की रात अब्दुल मलिक के घर हुई बैठक का हिस्सा भी नहीं था।
कोर्ट ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा, “अगर आप मौजूद थे, तो इसका मतलब है कि आप भी शामिल थे। अगर आपको वकील से परामर्श करना था, तो बैठक वकील के कार्यालय में होनी चाहिए थी, न कि आपके घर पर।” पीठ ने आगे पूछा, “अगर आपके घर में अपराध (साजिश) हो रहा था, तो एक कानून का पालन करने वाले नागरिक के रूप में क्या आपको पुलिस को सूचित नहीं करना चाहिए था?”
अतिरिक्त निर्देश:
हाई कोर्ट ने सरकार को हलफनामे की जांच कर रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। एक अन्य आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने सरकार को सभी आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट तैयार करने और अदालत में पेश करने का आदेश दिया।