नैनीताल। नैनीताल हाईकोर्ट ने कहा कि किसी सरकारी कर्मचारी को चार वर्ष से अधिक समय तक उच्च पद पर कार्य करने के बाद अचानक निचले पद पर भेजना गंभीर दंड की श्रेणी में आता है और यह बिना अनुशासनात्मक नियमों की प्रक्रिया के नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने विभागीय आदेश को निरस्त करते हुए याचिकाकर्ताओं को सहायक निदेशक (लेवल-10) पद पर पुनः कार्य करने का निर्देश दिया।
मामले में याचिकाकर्ता बीरेंद्र सिंह नबियाल व अन्य ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। बीरेंद्र को अप्रैल 1998 में लेखा परीक्षक और अक्टूबर 2005 में वरिष्ठ लेखा परीक्षक बनाया गया। दो अन्य याचिकाकर्ताओं को जून 1995 में लेखा परीक्षक और 2004 में वरिष्ठ लेखा परीक्षक के पद पर पदोन्नत किया गया। सभी को 30 जून 2014 को सहायक लेखा परीक्षा अधिकारी और जनवरी 2021 में डीपीसी की अनुशंसा पर सहायक निदेशक (लेवल-10) बनाया गया।
चार साल से अधिक समय तक उच्च पद पर कार्य करने के बाद, ट्रिब्यूनल के 14 अगस्त 2023 के निर्देश पर विभाग ने मार्च 2025 में डीपीसी की समीक्षा की। 18 मार्च 2025 को सचिव वित्त ने याचिकाकर्ताओं को सहायक निदेशक (लेवल-10) पर पदोन्नत किया, लेकिन अगले ही दिन 19 मार्च को निदेशक ने उन्हें सहायक लेखा परीक्षक (लेवल-8) पर वापस भेज दिया। याचिकाकर्ताओं ने इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी।
मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति आलोक महरा की खंडपीठ ने कहा कि 2003 के नियमों के तहत चार साल बाद पदावनति गंभीर दंड है, जिसके लिए अनुशासनात्मक प्रक्रिया जरूरी है। 2021 की पदोन्नति वैध डीपीसी पर आधारित थी और ट्रिब्यूनल ने केवल समीक्षा डीपीसी का निर्देश दिया था, न कि पदावनति का। अतः 19 मार्च 2025 का आदेश अवैध है। कोर्ट ने इसे निरस्त कर याचिकाकर्ताओं को लेवल-10 पर पुनः नियुक्त करने का आदेश दिया।
18 मार्च को पदोन्नति, 19 मार्च को पदावनति
विभाग ने अजीब प्रक्रिया अपनाई। 18 मार्च 2025 को सचिव वित्त ने याचिकाकर्ताओं को सहायक निदेशक (लेवल-10) पर पदोन्नत किया, लेकिन 19 मार्च को निदेशक ने उन्हें सहायक लेखा परीक्षक (लेवल-8) पर वापस भेज दिया। 2022 में दिनेश चंद्र पांडे ने उत्तराखंड लोक सेवा अधिकरण में याचिका दायर कर वरिष्ठता की गणना पदोन्नति आदेश की तिथि से करने की मांग की थी। अगस्त 2023 में अधिकरण ने समीक्षा डीपीसी का निर्देश दिया, जिसके आधार पर यह कार्रवाई हुई।
नैनीताल हाईकोर्ट का फैसला: चार साल बाद पदावनति गंभीर दंड, बिना अनुशासनात्मक प्रक्रिया अवैध
